बबली स्कूल से वापस आई
तभी उसकी मम्मी कंचन ने कहा – ‘‘बबली सीधे उपर आ।’’ बबली ने जिद करते हुए कहा –
‘‘मम्मी अभी ताई जी से चीज लेकर आती हूं।’’
लेकिन कंचन ने डाटते हुए
कहा – ‘‘सीधी उपर आती है या वहीं आकर तेरी पिटाई करूं खबरदार जो ताई जी के कमरे
में गई।’’
बबली डर गई और सीधे
सीढ़ियां चढ़ कर उपर पहुंच गई। मां के उपर गुस्सा करते हुए बोली – ‘‘क्या हुआ
मम्मी आपको पता है न ताई जी मेरे लिये कुछ न कुछ रखती हैं। अभी स्वीटी भी आ रही
होगी। वो सारी चीज उसे दे देंगीं। मैं ऐसे ही रह जाउंगी वो मुझे देगी भी नहीं।’’
कंचन जी ने कहा – ‘‘खबरदार जो आज के बाद ताई जी के पास गई और स्वीटी को भी मैं देख रही हूं उसे भी आते ही सीधा उपर बुलाती हूं।’’
तभी नीचे स्वीटी की बस आकर रुकी कंचन जी ने उसे भी बुला लिया। दोंनो बहने अपनी मम्मी से बहुत गुस्सा थीं। स्वीटी ने आते ही पूछा – ‘‘मम्मी क्या हो गया ताई जी से कोई बात हो गई है क्या?’’
कंचन जी ने कहा – ‘‘तुम बच्चे हो इस सब में मत पड़ो अब हम यहां नहीं रहेंगे तुम्हारे पापा गये हैं कहीं किराये पर मकान ढूंढने मिलते ही चले जायेंगे।’’
बबली बोली – ‘‘लेकिन मम्मी हुआ क्या है कुछ तो बताओ।’’
कंचन जी ने कहा – ‘‘बोला न कुछ नहीं हुआ चलो खाना खाकर पढ़ने बैठो।’’
दोंनो बहने कानाफूसी करते
हुए अपने कमरे में चली जाती हैं।
शाम को पूरे घर का माहौल बदला हुआ था। कोई भी किसी से बात नहीं कर रहा था।
कन्हैयालाल जी उनकी पत्नी
शान्ती उनका बेटा रोहन तीनों ही अपने घर से बाहर नहीं निकले इधर कंचन जी और उनके
पति रमेश जी भी बहुत कम बात कर रहे थे। दोंनो परिवार एक ही घर में उपर नीचे रहते
थे और शाम को आंगन में बैठ कर बातें करते थे। लेकिन आज दोंनो परिवार अपने अपने
कमरों में कैद थे।
बबली और स्वीटी को कुछ भी पता नहीं था कि क्या बात है। अगले दिन सुबह कंचन जी ने दोंनो बेट्यिों को जल्दी उठा दिया सारा सामान पैक करके तैयार होकर बैठ गये थोड़ी देर में गाड़ी आ गई जिसमें सामान चढ़ा दिया गया।
घर में बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था। दोंनो बेट्यिां ताउजी और ताईजी को देखना चाह रहीं थीं। लेकिन वे दोंनो अपने बेटे रोहन के साथ अपने कमरे में बंद थे। कुछ देर में सौरभ जी कंचन और दोंनो बेट्यिों को लेकर वहां से चल दिये।
बबली और स्वीटी दोंनो रोते हुए ताई जी के कमरे के दरवाजे को पीटने लगीं लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई। कंचन जी दोंनो को खींचते हुए ले गईं और गाड़ी में बिठा दिया। कुछ ही देर में गाड़ी अपनी नई मंजिल की ओर चल दी।
सालों से जो परिवार एक
साथ रह रहा था। अचानक सब बिखर गया। सौरभ जी और कंचन जी एक किराये के मकान में चले
गये थे।
नये घर में पहुंच कर कंचन जी सामान सजाने लगीं। बबली और स्वीटी दोंनो एक जगह बैठ कर खामेशी से सब देख रहीं थी।
सौरभ जी ने दोंनो बेट्यिों को समझाते हुए कहा – ‘‘बेटा हमें भी कोई खुशी नहीं हो रही वहां से आते हुए लेकिन तुम नहीं जानती उन्होंने हमारे साथ क्या किया। हमारी पुश्तैनी साड़ी की दुकान बीच बाजार में है। पिताजी के जाने के बाद से हम दोंनो भाई वो दुकान चला रहे हैं। सारा हिसाब भाई साहब देखते थे।
लेकिन अभी दस दिन पहले उन्होंने मुझे बताये बगैर रोहन को नई दुकान खुलवा दी। उस दुकान में पैसा लगा वो हमारी दुकान से ही आया था। जब मैंने पूछा तो कहा उस नई दुकान पर केवल उनके बेटे का हक है।
मेरे विरोध करने पर उन्होंने कहा – ‘‘तेरी तो लड़किया हैं तुझे क्या करना है उनकी शादी का खर्च भी तो इसी दुकान से निकलेगा।’’
इतनी बेईमानी सहकर मैंने मकान और दुकान में से अपना हिस्सा मांगा, तो भाई साहब ने कहा जैसे रह रहे तो रहते रहो मैं कुछ नहीं दूंगा।
इसलिये हम अलग होकर आ
गये। मैं अब कपड़े की सप्लाई का काम करूंगा। यकीन नहीं होता कि बड़े भाई होकर सारे
बिजनेस और मकान पर कब्जा करके बैठ गये।
बबली और स्वीटी को ये बातें समझ नहीं आ रहीं थीं। लेकिन धीरे धीरे कंचन और सौरभ ने उनके मन में ताउजी और ताईजी के लिये नफरत भर दी थी।
धीरे धीरे समय बीत रहा था। अब कभी कभी बाजार में, या स्कूल से आते जाते। रोहन या ताईजी दिख जाती थीं तो दोंनों बेट्यिां उनकी तरफ देखती भी नहीं थीं।
इसी तरह चार साल बीत गये। इस बीच दोंनो परिवारों में कोई बात नहीं हुई। सौरभ जी ने कपड़ों की सप्लाई का काम अच्छे से जमा लिया था। दोंनो बेट्यिां भी अब बड़ी हो रहीं थीं। अपने कमाई से उन्होंने एक छोटा सा मकान भी खरीद लिया था।
एक दिन रात के दो बजे
कन्हैयालाल जी के मोबाईल की घंटी बजी। सभी गहरी नींद में सो रहे थे। लंबी घंटी
बजने के बाद बंद हो गई। कन्हैयालाल जी ने उठ कर देखा तो यह सौरभ का फोन था।
उन्होंने शान्ती जी को जगाया।कुछ समझ पाते इससे पहले ही दुबारा फोन की घंटी बजने
लगी। कन्हैयालाल जी ने फोन उठाया। दूसरी तरफ से स्वीटी की रोने की आवाज आ रही थी –
‘‘ताउजी पता नहीं पापा को क्या हो गया अचानक बेहोश हो गये। बहुत डर लग रहा है। आप
जल्दी से आ जाईये।’’
कन्हैयालाल जी ने कहा – ‘‘बेटी तू चिन्ता मत कर मैं अभी आ रहा हूं।’’
कन्हैयालाल जी, शान्ती और रोहन को लेकर तुरंत सौरभ के घर पहुंच गये। रास्ते में उन्होंने डॉक्टर को फोन कर दिया था। डॉक्टर ने पहुंच कर इंजेक्शन दिया। फिर बताया – ‘‘माईनर हार्ट अटैक है। हॉस्पिटल ले जाना होगा।’’
कन्हैयालाल जी अपनी गाड़ी में सौरभ और कंचन को लेकर हॉस्पिटल पहुंच गये। इधर शान्ती जी दोंनो बेट्यिों को सम्भालने लगीं।
सही समय पर इलाज मिल जाने से खतरा टल गया। दो दिन में सौरभ ठीक हो गया। दोपहर के समय शान्ती जी दोंनो बेट्यिों को लेकर हॉस्पिटल पहुंच गईं।
स्वीटी पापा को देख कर रोने लगी – ‘‘ताउजी मुझे कुछ समझ नहीं आया मैंने बस आपको फोन कर दिया। एक बार लगा आप बात नहीं करोगे। लेकिन आपने मेरे पापा को बचा लिया।’’
कन्हैयालाल जी बोले – ‘‘तेरा बाप बाद में है पहले मेरा छोटा भाई है।’’
कंचन ने कहा – ‘‘दीदी आज आप लोग न होते तो न जाने क्या हो जाता। हमें माफ कर दीजिये।’’
उसकी बात सुनकर सौरभ भी बोल पड़ा – ‘‘हां भैया मुझे माफ कर दीजिये। मुझे आपको छोड़ कर नहीं आना चाहिये था।’’
कन्हैयालाल जी बोले – ‘‘तू बस आराम कर बाकी सब भूल जा कुछ नहीं हुआ हमारे बीच। तेरे जाने के बाद हमें बहुत पछतावा हुआ। गलती तो इन्सान से ही होती है। इसलिये मैंने अपनी पुरानी दुकान तेरी दोंनो बेट्यिों के नाम कर दी है। कागज घर पर रखे हैं भिजवा दूंगा।’’
सौरभ बोला – ‘‘नहीं भैया मुझे कुछ नहीं चाहिये। बस वादा कीजिये अगर मुझे कुछ हो जाये तो मेरे परिवार का ध्यान रखना।’’
शान्ती जी बीच में रोकते हुए बोली – ‘‘खबरदार जो बुरा बोला तो तू मेरा देवर है पर मैंने रोहन में और तुझमें कभी फर्क नहीं समझा। रोहन को दुकान अलग इसलिये करवाई थी, कि ये दुकान तुम्हें देकर हम तीर्थ पर चले जायें।
लेकिन तुमने तो कुछ ओर ही समझ लिया। या हम समझा नहीं पाये।
सभी एक दूसरे से माफी मांग रहे थे। तभी रोहन बोला – ‘‘क्या अब मेरी बहने मुझे राखी बाधेंगी? चार साल हो गये मेरी कलाई सूनी पड़ी है।’’
यह सुनकर पूरा परिवार हसने लगा। सब अपने पुराने मकान में वापस आ गये और नये मकान को किराये पर दे दिया।
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