जादूगरनी का तोता

 

पहाड़ के उपर एक मकान बना हुआ था। उसमें चित्रकला नाम की एक जादूगरनी रहती थी। वह काला जादू जानती थी।



पहाड़ के नीचे तलहटी में एक गांव बसा हुआ था। जिस पर जादूगरनी ने अपने जादू से कब्जा किया हुआ था। गांव के लोग जादूगरनी से बहुत डरते थे। उन्हें पता था। कि अगर जादूगरनी को गुस्सा आ गया तो अपने जादू से पूरे गांव को खत्म कर सकती है।

इसलिये गांव वाले जादूगरनी को खुश करने के लिये उसकी हर बात मानते थे। गांव वाले जितना भी कमाते थे। उसका एक बड़ा हिस्सा जादूगरनी को देना पड़ता था।

कई सदियों से यही परंपरा चली आ रही थी। गांव के लोग जवान से बूढ़े होकर मर जाते थे। लेकिन जादूगरनी हमेशा जवान और खूबसूरत बनी रहती थी। इसका राज कोई नहीं जानता था।

इसी गांव के एक घर में राकेश नाम का एक बच्चा रहता था। उसके पिता खेत में काम करते करते चल बसे। पिता के मरने के बाद राकेश ने खेती का काम संभाल लिया। लेकिन जितना भी अनाज वह मेहनत करके उगाता था। उसका एक बड़ा हिस्सा जादूगरनी को देना पड़ता था।

एक दिन राकेश ने अपनी मां से कहा – ‘‘मां ऐसे तो हम कभी चैन से रह नहीं पायेंगे। इस जादूगरनी के कारण मेरे पिता की मृत्यु हो गई और अब मैं भी इसकी गुलामी कर रहा हूं।’’

राकेश की मां ने कहा – ‘‘बेटा तुझसे पहले भी कई लोगों ने जादूगरनी का विरोध किया लेकिन उसने अपने जादू से सबको मार डाला। हम कुछ नहीं कर सकते हैं।’’

राकेश ने मां की बात को बीच में काट कर पूछा – ‘‘लेकिन मां कोई तो रास्ता होगा। इस सबसे बाहर निकलने का।’’

राकेश की मां बोली – ‘‘बेटा मेरी बात मान जैसा चल रहा है चलने दे।’’

राकेश उस समय तो चुप हो जाता है, लेकिन उसके मन में जादूगरनी से गांव वालों को छुटकारा दिलाने की बात घर कर गई।

राकेश अगले दिन से अपने खेत पर काम करने जाने लगा। लेकिन उसका मन काम से ज्यादा जादूगरनी में लगा हुआ था।

दोपहर को राकेश एक पेड़ के  नीचे खाना खाने बैठा। वहीं उसके बराबर के खेत के दीनानन्द चाचा भी खाना खा रहे थे।

दीनानन्द चाचा से राकेश ने अपने मन की बात कही। राकेश की बात सुनकर उन्होंने कहा – ‘‘बेटा बात तो तेरी ठीक है लेकिन काम बहुत कठिन है इसमें तेरी जान भी जा सकती है।’’

राकेश बोला – ‘‘चाचा अगर गांव वालों को बचाने में मेरी जान भी चली गई तो मुझे खुशी होगी। आप कोई तरीका बताओ।’’

तब दीनानन्द चाचा ने कहा – ‘‘आज से कई साल पहले गांव में एक किसान ने जादूगरनी को मारने की कोशिश की थी।

लेकिन जादूगरनी को पता लग गया। फिर जादूगरनी ने उससे बदला लेने के लिये उसका सब कुछ छीन लिया और वह उसे मारने की तैयारी कर रही थी। लेकिन वह पहले ही गांव छोड़ कर भाग गया। तुम उससे मिलो उसका नाम गोपाल है। वह पास ही के एक गांव में रहता है। लेकिन वह किसी से मिलता नहीं है।’’

राकेश बोला – ‘‘लेकिन क्यों चाचा?’’

दीनानन्द जी ने कहा – ‘‘बेटा उसे डर है कि कहीं जादूगरनी ने उसे मारने के लिये न भेजा हो।’’

राकेश ने सारी बात समझ ली अगले दिन वह दूसरे गांव चल दिया। वहां वह गोपाल के घर पहुंचा। बहुत विश्वास दिलाने के बाद गोपाल ने राकेश से बात की।

 

गोपाल ने कहा – ‘‘मैंने एक बार रात को जादूगरनी के महल में जाकर उसका गला दबाया जिससे वह सोते सोते मर जाये। लेकिन वह मरी नहीं क्योंकि उसने अपने प्राण एक तोते में रख रखे हैं।’’

राकेश को बहुत आश्चर्य हुआ उसने पूछा – ‘‘लेकिन ऐसा क्यों चाचा।’’

गोपाल ने आगे बताना शुरू किया – ‘‘बात यह है कि जादूगरनी हमेंशा जवान और खूबसूरत बने रहना चाहती है। लेकिन उसका जादू अपने उपर नहीं चलता। इसलिये उसने उस तोते को पाल रखा है। उसे जादू से जवान बना रखा है। उसके अंदर जादूगरनी के प्राण हैं। इसलिये वह भी जवान बनी रहती है। अगर कोई उस तोते को मार दे तो सब ठीक हो जायेगा।’’

राकेश, गोपाल से विदा लेकर अपने गांव वापस आ जाता है।

रात होते ही वह चुपचाप जादूगरनी के महल में पहुंच जाता है। वहां देखता है कि जादूगरनी सो रही है और उसके पास ही मेज पर एक पिंजरा था। जिसमें वह तोता था।

राकेश तोते को हरी मिर्च खाने को देता है। तोता बहुत खुश हो जाता है। फिर राकेश उससे कहता है – ‘‘तुम कब तक इस पिंजरे में रहोगे, तुम चाहो तो मैं तुम्हें आजाद कर सकता हूं।’’

तोता बोला – ‘‘मुझे कोई भी इस कैद से बाहर नहीं निकाल सकता।’’

राकेश बोला – ‘‘कोई तो रास्ता होगा?’’

तोते ने कहा – ‘‘अगर कोई मुझे मार दे तो मैं आजाद हो सकता हूं। मैं मर गया तो जादूगरनी की जान चली जायेगी। उसकी जान जाते ही मैं दुबारा जिंदा हो जाउंगा क्योंकि मेरे अंदर दो जान हैं।’’

राकेश ने पूछा – ‘‘लेकिन तुम्हें कैसे मारा जाये जिससे तुम्हें तकलीफ न हो।’’

तोते ने कहा – ‘‘तुम किसी तरह इस कमरे में धुंआ भर दो दम घुटने से मैं मर जाउंगा।’’

राकेश सारी बात सुनकर वापस आ जाता है। अगली रात वह जाकर देखता है जादूगरनी सो रही है। वह अपने साथ कुछ लकड़ियां लाता है। उन्हें जला कर खिड़की से अंदर फेंक देता है। फिर खिड़की बंद कर देता है।

धुंए से जादूगरनी उठ जाती है। वह पिंजरे को लेकर बाहर की ओर भागती है, लेकिन राकेश बाहर से दरवाजा बंद कर देता है। कुछ ही देर में तोता मर जाता है। उसके मरते ही जादूगरनी के हाथ से पिंजरा छूट जाता है और वह मर जाती है। यह सब रकेश बाहर से देख रहा था। जादूगरनी के मरते ही वह खिड़की खोल कर अंदर जाता है और पिंजरे को बाहर ले आता है।

कुछ ही देर में तोता जिंदा हो जाता है। इस तरह राकेश की हिम्मत और सूझबूझ से गांव वालों को जादूगरनी से छुट्टी मिल जाती है।


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