गांव का डाकिया

सुमन गांव की एक छोटी सी बच्ची थी। वह सुबह स्कूल जाया करती थी। रास्ते में उसे कर्मा चाचा मिलते थे। सुबह सुबह साईकिल पर डाकखाने जा रहे होते थे।



सुमन को देख कर साईकिल रोक लेते और उसे एक टॉफी देकर कहते – ‘‘मेरी बेटी आज पढ़ने जा रही है।’’

टॉफी पाकर सुमन बहुत खुश होती। कर्मा चाचा उसके पिता के बहुत पुराने दोस्त थे। अक्सर डाक बाटने के बाद शाम को हमारे घर आ जाते थे। मां के हाथ की चाय पीने। मां उन्हें अपना भाई मानती थी और राखी भी बांधती थी।

कर्मा चाचा बहुत मजाक करते थे। उनके घर आते ही घर में ठहाकों का दौर शुरू हो जाता था।

सुबह कर्मा चाचा से टॉफी लेकर सुमन स्कूल की ओर चल दी। स्कूल में पहुंच कर उसने टॉफी अपने बस्ते में रख ली। दोपहर को टॉफी खाती हुई वह घर जा रही थी।

तभी उसे कर्मा चाचा दिखो बोले – ‘‘चल बेटी बैठ जा साईकिल पर मैं उस तरफ ही जा रहा हूं डाक बांटने।’’

सुमन मजे से साईकिल पर बैठ कर घर पहुंच गई। उसे आता देख मां ने कहा – ‘‘भैया आप कहां इस शैतान के चक्कर में पड़ जाते हैं। आपको दूसरे गांव जाना होता है डाक बांटने ये तो अपने आप आ जाती स्कूल से।’’

कर्मा चाचा ने हसते हुए कहा – ‘‘बहन मामा के होते भान्जी पैदल चले यह नहीं हो सकता मुझे तो जब भी यह मिलेगी मैं सारा काम छोड़ कर इसे घर छोड़ने आ जाउंगा।’’

यह सुनकर मां ने कहा – ‘‘ठीक है भैया आप जानो और आपकी बेटी। बैठो आप भी खाना खा लो।’’

कर्मा चाचा ने डाक दिखाते हुए कहा – ‘‘नहीं बहन तीन गांवो में डाक बांटने जाना है।’’ फिर वे साईकिल में पैडल मारते हुए आगे बढ़ गये।

कर्मा चाचा के बारे में कुछ पता नहीं था बस इतना पता था कि आज से आठ साल पहले ये इस गांव में आये थे तब से यहीं हैं। इनके घर परिवार में कोई नहीं था। इस गांव के  लोगों को ही अपना घर परिवार मानते थे।

एक दिन सुबह सुबह सुमन की मां बाहर खड़ी थी। तभी कर्मा चाचा दूर से आते दिखाई दिये।

मां ने उन्हें रोका और कहा – ‘‘भैया सुमन को बहुत तेज बुखार है उल्टी भी हो रही हैं। मैं दवाई दी थी लेकिन कोई आराम नहीं पड़ा लगता है इसे शहर लेकर जाना पड़ेगा।’’

कर्मा चाचा फटाफट साईकिल से उतर कर घर में आये अपना थैला एक ओर पटका और सुमन को उठा कर चल दिये। मां की गोद में सुमन को देकर कहा – ‘‘जल्दी से साईकिल के पीछे बैठ जाओ।’’

मां ने कहा – ‘‘भैया आपकी ड्यूटी?’’

लेकिन उन्होंने मां को डाट कर चुप करा दिया। मां साईकिल के पीछे सुमन को गोद में लेकर बैठ गई कर्मा चाचा जल्दी से पैडल मार कर शहर की ओर चल दिये। बारह किलोमीटर गर्मी में साईकिल चला कर शहर पहुंचे वहां डॉक्टर ने सुमन का चेकअप किया और उसे भर्ती कर लिया।

तीन दिन तक सुमन का इलाज चलता रहा लेकिन कर्मा चाचा एक मिनट के लिये भी उसे छोड़ कर नहीं गये। मां पिताजी और कर्मा चाचा तीनों सुमन के पास बैठे रहे।

तीसरे दिन सुमन की कुछ तबियत कुछ संभली तो वह घर जाने की जिद करने लगी। मां-पिताजी गाड़ी करके उसे घर ले आये कर्मा चाचा पीछे पीछे साईकिल पर आ गये।

जब तीन दिन बाद कर्माचाचा डाकखाने पहुंचे तो उनके बड़े बाबू ने उन्हें खूब डाटा। बहुत सारी डाक और मनीऑडर पड़े हुए थे। दस दस घंटे साईकिल चला कर उन्होंने कई दिनों तक ये डाक बांटी। इतनी मेहनत करके भी दिन में एक बार सुमन से मिलने जरूर आते थे।

सुमन का पूरा परिवार उनका बहुत एहसान मानता था। कर्मा चाचा पूरे गांव में हर किसी को अपना परिवार मानते थे। हर काम में ऐसे लग जाते जैसे ये उन्हीं का परिवार है।

धीरे धीरे सुमन बड़ी हो गई उसके पिता उसके लिये लड़का देखने लगे। एक दिन सुमन का रिश्ता पक्का हो गया। उस दिन वह कर्मा चाचा से लिपट कर बहुत रोई थी। कर्मा चाचा ने हसते हुए कहा – ‘‘पगली मैं रोज तेरे घर चिट्ठी देने आया करूंगा यहीं पास ही में तो है तेरा गांव’’

यह सुनकर सुमन हस पड़ी। सुमन की शादी के लिये कर्मा चाचा ने डाकखाने से पूरे सप्ताह की छुट्टी ली थी। वैसे इसके लिये उन्हें लगभग एक महीने तक ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी और पैसे भी कटेंगे।

पूरी शादी पिताजी और गांववालों के साथ कंधे कंधा मिला कर कर्माचाचा ने काम करवाया। मां का कोई भाई नहीं था, तो भात की रस्म भी कर्माचाचा ने निभाई। सबके लिये उपहार लाये साथ में सबको भेंट भी दी। पिताजी ने मना भी किया तो उन्हें डाटने लगे।

सुबह सुमन की विदाई होने वाली थी वह अपनी मां से, पिता से बाकी सहेलियों और रिश्तेदारों से मिल कर रो रही थी। लेकिन कर्माचाचा कहीं नजर नहीं आये। वो उन्हें याद करती रही एक दो आदमियों को उन्हें ढूंढने भेजा भी लेकिन वे कहीं नहीं मिले।

सुमन के मामा शायद उसको विदा होते नहीं देख सकते थे। इसलिये कहीं छिप गये थे।

कुछ दिन बाद जब सुमन घर आई तब कर्मा चाचा मिलने आये लेकिन वो गुस्सा होकर बैठ गई। बहुत कोशिश करने पर बड़ी मुश्किल से मानी थी।

कुछ दिन बाद सुमन अपने सुसराल में व्यस्त हो गई।

इसी तरह कई साल बीत गये। इसी बीच सुमन के पिता का देहान्त हो गया। सुमन जब गांव पहुंची तो कर्मा चाचा से लिपट कर बहुत रोई। कर्मा चाचा भी अब बूढ़े हो गये थे।

कई साल बाद सुमन अपने पांच साल के बेटे को लेकर गांव गई। वह अपनी मां से मिल कर सीधे डाकघर की ओर चल दी। कर्मा चाचा से मिलने लेकिन जब वहां पहुंची तो वहां कोई नया डाकिया बैठा डाक सम्हाल रहा था। यह देखकर सुमन घर वापस आ गई।

मां से पूछा – ‘‘मां कर्मा चाचा कहां हैं? क्या वो अब डाकिया नहीं रहे?’’

मां ने बताया – ‘‘बेटा बहुत बुरा हुआ तेरे कर्मा चाचा के साथ। दो साल पहले वे डाक बांटने जा रहे थे। तभी कुछ लोगों ने उनके मनीआर्डर के पैसे छीन लिये और उन्हें मारा भी रकम ज्यादा थी जमींदार के बेटे ने भेजे थे।

जमींदार ने गांव वालों के साथ मिल कर सारा इल्जाम कर्माचाचा के उपर लगा दिया। उनकी नौकरी चली गई साथ ही न अब पेंशन मिलेगी न कुछ और मिलेगा।

अब वो गांव के बाहर मन्दिर के पीछे एक खाट पर पड़े रहते हैं कोई कुछ दे जाता है तो खा लेते हैं। मैंने बहुत कोशिश की कि वे हमारे घर आ जाये। लेकिन वे नहीं माने बोले सुमन के पिता होते तो जरूर आता बहन पर बोझ नही बन सकता।’’

सुमन भागती हुई कर्मा चाचा के पास गई। उसने देखा एक टूटी हुई खाट पर डाकिये की फटी-पुरानी वर्दी पहले कर्मा चाचा लेटे हैं। हसते मुस्कुराते हुए चहरे की जगह झुररियों से भरा सूखा सा चेहरा आंखों के नीचे काले गढ्ढे।

सुमन उनके पास गई तो डाटते हुए बोले – ‘‘भाग यहां से यहां मत आ मुझे टी.बी. है तुझे लग जायेगी।’’

सुमन डर गई वह दूर से कर्मा चाचा को देखती रही। कर्मा चाचा कुछ देर देखते रहे फिर बोले – ‘‘जा बेटी मैं तो अब तुझे टॉफी भी नहीं दे सकता। मेरे पास आने की कोशिश भी मत करना।’’

सुमन रोती हुई वापस आ गई कुछ देर मां के पास बैठ कर रोती रही फिर वापस सुसराल चली गई।

कुछ दिन बाद उसकी मां मिलने आई तो उन्होंने बताया कर्मा चाचा अब नहीं रहे।

एक जिन्दादिल इन्सान जिसने सबकी भलाई की उसका ऐसा अंत। सबकी खुशियों की डाक बांटने वाला खुद अकेला रह गया था।


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Bed time stories for kids in hindi

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