एक शहर में सोनू नाम का
एक लड़का सड़क पर पानी की बोतल बेच रहा था। वह चौराहे पर खड़ा हो जाता और जो भी
लाल बत्ती पर गाड़ी रुकती उसे पानी की बोतल दिखा कर बेचने की कोशिश करता। कोई खरीद
लेता कोई मना कर देता था।
सोनू दौड़ कर गाड़ी के
पास गया। गाड़ी में शालीन सी महिला बैठी थीं। उन्होंने सोनू से बोतल ले ली और उसे
पैसे दे दिये। लेकिन पैसे खुले न होने के कारण सोनू इधर उधर भागता रहा कि कहीं से
पांच सौ रुपये के खुले मिल जायें,
लेकिन पैसे न मिल सके।
इसी बीच लाईट ग्रीन हो जाती है और गाड़ी चल देती है। सोनू गाड़ी के पीछे भागता है लेकिन गाड़ी जल्दी से निकल जाती है। सोनू पांच सौ का नोट हाथ में पकड़े खड़ा रह जाता है।
तभी उसके साथ सामान बेचने वाला कल्लन उसके पास आता है –
कल्लन: क्यों बे आज तो लंबा हाथ मारा है। चल पार्टी देदे कम से कम एक चाय तो पिला दे।
सोनू: इसमें सिर्फ बीस रुपये मेरे हैं बाकी के वापिस करने थे। कभी ये गाड़ी दुबारा दिखेगी तो वापिस कर दूंगा।
कल्लन: अबे पागल है क्या? कोई पैसे वापस करता है और जिन्हें तू वापस करने की सोच रहा है उन्हें याद भी नहीं होगा।
लेकिन सोनू नहीं मानता वह पानी की एक बची बोतल को अपने थर्माकोल के डिब्बे में डाल कर घर की ओर चल देता है।
घर पहुंच कर देखता है उसकी मां रमावती भी काम से वापस आ चुकी थी। रमावती घरों में काम करती थी।
सोनू: मां आज एक गाड़ी वाले ने पांच सौ का नोट दिया इससे पहले मैं पैसे वापस देता गाड़ी चली गई।
रामवती: कोई बात नहीं बेटा। कभी वो गाड़ी दिखे तो वापिस कर देना।
इसी तरह समय बीत रहा था। सोनू दिन भर पानी की बोतल बेचता था।
एक दिन उसे वही गाड़ी नजर आई वह दौड कर गाड़ी के पास गया।
औरत: नहीं बेटा आज पानी नहीं चाहिये।
सोनू: मालकिन मैं पानी की बात नहीं कर रहा उस दिन आपके पैसे रह गये थे। ये लो अपने चार सो अस्सी रुपये।
औरत: कौन से पैसे ?
सोनू: उस दिन आपने पानी की बोतल ली थी, मैं खुले पैसे लेने गया तब तक आपकी गाड़ी चली गई थी।
यह कहते हुए सोनू ने
जल्दी से जेब से निकाल कर पैसे पकड़ा दिये।
औरत: ड्राईवर गाड़ी साईड में लगाओ। बेटा साईड में चल कर बात करते हैं।
गाड़ी से उतर कर उस औरत ने सोनू से पूछा –
औरत: बेटा तुम चाहते तो
ये पैसे रख सकते थे। इन्हें वापस करने की क्या जरूरत थी।
सोनू: मालकिन हम अपनी मेहनत का खाते हैं। इसमें केवल बीस रुपये मेरे थे वो मैंने ले लिये।
औरत: चलो अब ये पैसे मैं तुम्हें दे रही हूं ये रख लो।
सोनू: नहीं ये मैं नहीं ले सकता। मां ने मना किया है।
सोनू की बातें सुनकर कविता जी सोच रहीं थी। इतनी गर्मी में पूरे दिन मेहनत करके भी इस लड़के में कितनी ईमानदारी भरी है।
कविता जी: बेटा तुम कहां रहते हो?
सोनू: वो सामने सड़क के
पीछे कुछ झुग्गियां दिखाई दे रही हैं हम वहीं रहते हैं।
कविता जी ने कई बार पैसे देने की कोशिश की लेकिन सोनू ने पैसे नहीं लिये फिर कविता जी अपनी गाड़ी में बैठ कर चली गईं।
सोनू के चेहरे पर एक संतोष का भाव था। उसने सारी बात अपनी मां को बताई यह सुनकर उसकी मां बहुत खुश हुई।
तब से जब भी कविता जी वहां से गुजरती सोनू से दो या तीन पानी की बोतल लेती जिससे उसकी मदद हो सके।
इसी तरह समय बीत रहा था।
कुछ दिन बाद कविता जी उधर से गुजरीं तो उन्हें सोनू कहीं दिखाई नहीं दिया।
जब कई दिनों तक सोनू नहीं दिखा। तो कविता जी ने एक दिल कल्लन को इशारे से बुलाया।
कल्लन: मालकिन पानी चाहिये क्या?
कविता जी: वो सोनू कहां है नजर नहीं आ रहा।
कल्लन: उसके साथ तो बहुत बुरा हुआ। उसकी मां मर गई। उसके मरने के बाद यहां के गुंडों ने उसकी झुग्गी पर कब्जा करके उसे भगा दिया।
कविता जी: लेकिन अब वो कहां मिलेगा।
कल्लन: वो तो पता नहीं उसे उन लोगों ने बहुत मारा था शायद किसी अस्पताल में पड़ा हो या मर भी गया हो।
यह सुनकर कविता जी की आंखे नम हो गईं। उन्होंने सारा काम छोड़ कर सोनू को ढूंढना शुरू किया। लेकिन उसका कहीं पता नहीं लगा। कल्लन की बात उनके दिमाग में घूम रही थी – ‘‘शायद मर भी गया हो’’।
इसी तरह कई महीने बीत गये
सोनू का कोई पता नहीं लगा। कविता जी ने इसे भाग्य का खेल मान कर सब्र कर लिया।
लेकिन सोनू की इमानदारी उन्हें आज भी झकझोर जाती थी। इतने इमानदार बच्चे के साथ
इतना गलत नहीं होना चाहिये था।
पहले तो कविता जी ने उसे अनदेखा कर दिया, लेकिन ध्यान से देखने पर उन्होंने पाया कि यह तो सोनू है।
फटाफट गाड़ी रुकवा कर वो उसके पास गईं। उन्हें देख कर सोनू रोने लगा।
कविता जी: बेटा ये सब कैसे हुआ और तू भीख क्यों मांग रहा है।
सोनू: मालकिन इमानदारी सब मां के साथ चली गई। मेरी झुग्गी पर कब्जा हो गया उनका विरोध करने की सजा पैर देकर चुकानी पड़ी। अब तो मेरे पास कुछ नहीं है। इसलिये भीख मांग रहा हूं।
कविता जी की आंखे भी नम हो गईं।
कविता जी: कौन कहता है तेरी मां के साथ इमानदारी चली गई। तेरी मां ने जो सिखाया उस इमानदारी की वजह से तू मेरे पैसे वापस करने आया। तभी मैं तुझे याद रख पाई, वरना यहां सैकड़ों बच्चे घूम रहे हैं। जिन्हें में जानती नहीं तेरी इमानदारी के कारण कई महीनों से तुझे ढूंढ रही हूं।
उनकी बातें सुनकर सोनू सिर्फ रो रहा था। हसता मुस्कुराता बच्चा अब जिन्दगी से मायूस और निराश दिख रहा था।
कविता जी उसे अपने घर ले गईं। उसे न केवल अपने घर में रखा बल्कि उसके लिये एक पैर भी बनवाया अब सोनू भी और बच्चों की तरह चल सकता था। सोनू को उन्होंने अपना बेटा बना लिया था। अब वह स्कूल जाता था।
एक दिन उसी चौराहे पर कविता जी की गाड़ी रुकी। तभी कल्लन दौड़ता हुआ पानी की बोतल लेकर आया। पास में बैठे सोनू को देख कर वह चौक गया।
सोनू कार से उतरा और कल्लन को गले लगाया।
सोनू: कल्लन ये वही चार सो अस्सी रुपये की इमानदारी है। जिसे तू पार्टी में उड़ाना चाहता था।
कुछ ही देर में लाईट ग्रीन हो गई –
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