पारस एक खिलौने वाले की
दुकान पर खड़ा था। अभी अभी उसका रिजल्ट आया था। जिसमें वह फर्स्ट डिविजन में पास
हुआ था। उसके पापा श्रीकान्त जी उसे लेकर पास ही की खिलौनों कि दुकान पर ले गये।
वहां पारस ने बहुत से
खिलौने देखे लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। बहुत देर बाद उसे दुकान पर एक
मुखौटा दिखा जो कि एक मुस्कुराते हुए आदमी का था।
उस मुखौटे में कुछ ऐसा था
कि पारस उसे देखता ही रह गया। जैसे उस मुखौटे ने उस पर कोई जादू कर दिया। पारस
अपने पापा से उस मुखौटे को लेने की जिद करने लगा।
श्रीकान्त जी: बेटा इसका
क्या करेगा? कोई खिलौना लेले। देख
कितनी अच्छी कार है, रिमोट वाली।
पारस: नहीं पापा मुझे बस
ये ही चाहिये।
हार कर श्रीकान्त जी ने
उसे वह मुखौटा खरीद कर दे दिया। दोंनो घर के लिये चल दिये। कार में बैठ कर पारस ने
मुखौटा लगया और सामने वाले शीशे में देखा उसमें वह काफी डरावना लग रहा था। उसने झट
से उसे उतार दिया।
पापा: क्या हुआ अपनी शक्ल
देख कर डर गये।
यह कहकर पापा जोर से हसने
लगे।
पारस: मैं किसी से नहीं
डरता वो बस पहली बार लगाया था। तो अजीब सा लग रहा था।
पारस ने मुखौटे को पीछे
की सीट पर रख दिया और खिड़की से बाहर देखने लगा। तभी उसे काली हुडी पहने एक आदमी
दिखाई दिया जिसने वही मुखौटा पहना था। वह पारस की ओर हाथ हिला रहा था।
पारस: पापा देखा वह आदमी
जिसने मुखौटा पहना है मुझे बुला रहा है।
पापा ने देखा लेकिन वहां
कोई नहीं था।
पापा: कहां है बेटा कोई
भी तो नहीं है। लगता है तुम इस मुखौटे से डर गये हो अगर ये तुम्हें पसंद नहीं है
तो इसे बाहर फैंक दो।
पारस: नहीं पापा ये तो
मैंने बहुत मन से खरीदा है। इससे मैं अपने दोस्तों को डराउंगा।
इसी तरह बातें करते करते
दोंनो घर आ जाते हैं।
घर पर पारस की मम्मी
तनुजा के पूछने पर पारस उन्हें मुखौटा दिखा देता है।
तनुजा: बेटा ये क्यों ले
आये। इससे लोग डरेंगे।
पारस: दोस्तों को डराने
के लिये ही तो लाया हूं मम्मी।
कुछ देर बाद पारस अपने
दोस्तों के साथ खेलने चल देता है। वह मुखौटा अपनी शर्ट के अंदर रख लेता है।
उसके सभी दोस्त पास के
मैदान में क्रिकेट खेलने के लिये इकट्ठे हो जाते हैं।
तभी वह मुखौटा पहन कर सभी
को डराने लगता है। उसके सभी दोस्त इधर उधर भागने लगते हैं। पारस को बहुत मजा आता
है। तभी वह देखता है कि मैदान के एक किनारे पर वही आदमी खड़ा होता है। मुखौटा
लगाये।
पारस डर जाता है। वह
जल्दी से मुखौटा उतार कर घर की ओर चल देता है। वह आदमी पारस के पीछे पीछे चलने
लगता है।
कुछ देर में वह पारस के
सामने आ जाता है। पारस डर के आंखे बंद कर लेता है और मुखौटा फैंक देता है। वह अदमी
मुखौटा उठा कर उसे अपने कपड़े से साफ करता है।
आदमी: बेटा डरो नहीं। मैं
तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाउंगा।
पारस: ये मुखौटा तुम रख
लो पर मेरा पीछा छोड़ दो।
आदमी: बेटा मैं तुम्हें
डरा नहीं रहा हूं। एक बार मेरी बात सुन लो।
वह आदमी पारस को लेकर एक
किनारे बैठ जाता है। फिर वह अपना मुखौटा उतारता है।
पारस: अरे आप तो बिल्कुल
हमारे जैसे दिखते हो। लेकिन आप इतने बड़े होकर मुखौटा पहन कर क्यों घूमते हो?
आदमी: बेटा मैं एक जोकर
का काम करता हूं। बच्चों की पार्टियों में जोकर बन कर सबको हसाता था। जहां बच्चों
के साथ बड़े भी मेरा मजाक उड़ाते थे।
मुझे इसके अलावा कुछ और
नहीं आता है। एक दिन मैं एक बर्थडे की पार्टी में अपने करतब दिखा रहा था। उस
पार्टी में मेरा छोटा सा बेटा भी आया था, मुझे उसके बारे में पता नहीं था। तभी मेरे हाथ पर बंधी घड़ी से उसने मुझे
पहचान लिया। उसने मेरा मुखौटा हटा दिया। वह रोने लगा और पार्टी छोड़ कर भाग गया।
मुझे बहुत दुःख हुआ। उसे
बुरा लगा कि उसके पापा जोकर हैं।
तब से वह मेरे से बात
नहीं करता। मैं चाहता हूं कि कुछ और काम करूं लेकिन मुझे कोई काम नहीं मिलता। उस
दिन जब तुम यह मुखौटा खरीद रहे थे तो मैंने सोचा क्यों न अपने बेटे से तुम्हें
मिलवाउं। जिससे वो अपने पापा से नफरत न करे। उसे पता लगे कि और भी लोग मुखौटा पहनते
हैं।पारस: बस इतनी सी बात है अंकल। यहीं पास ही में मेरा घर है। आप अपने बेटे को
लेकर मेरे घर आ जाईये। मैं उसे अच्छे से समझा दूंगा। लेकिन तब तक यह मुखौटा मत
पहनिये।
आदमी: बेटा तुम नहीं
जानते तुमने मेरा कितना बड़ा बोझ हल्का कर दिया। तुम चलो मैं आता हूं।
पारस घर आ जाता है। वह घर
आकर अपने मम्मी पापा को सारी बात बताता हैं।
कुछ देर में वह आदमी अपने
बेटे सूरज को लेकर आ जाता है।
पारस: सूरज तुम अपने पापा
से गुस्सा क्यों हो?
सूरज: भला किसी के पापा
जोकर होते हैं। मेरे पापा ने मेरे दोस्तों के सामने इन्सल्ट कर दी।
श्रीकान्त: बेटा कोई काम
छोटा बड़ा नहीं होता और वैसे भी तुम्हारे पापा ये सारा काम मुखौटा लगा कर करते
हैं। इसलिये चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है। उन्हें कोई नहीं पहचानता।
उसके बाद पारस, सूरज को वह मुखौटा दिखाता है। उसे पहनते ही
पारस का चेहरा ढक जाता है।
सूरज भी मुखौटा पहन कर
देखता है।
तनुजा: बेटा आपके पापा
बहुत महान काम करते हैं। बच्चों को हसाने का ऐसा हर कोई नहीं कर सकता। फिर भी अगर
तुम्हें ये सब पसंद नहीं है। तो उन्हें समय दो वो अपना काम बदल लेंगे।
उसके लिये उन्हें कोई और
काम सीखना होगा जिसमें समय लगेगा। लेकिन अगर तुम उनसे गुस्सा रहोगे तो उन्हें बहुत
बुरा लगेगा।
यह सुनकर सूरज रोने लगता
है और अपने पापा से लिपट कर माफी मांगने लगता है।
श्रीकांतजी: भाई साहब आप
कल से जब भी आपके पास समय हो मेरे ऑफिस आ जाना वहां मैं आपको एकाउंट का कुछ काम
सिखा दूंगा, दो-तीन महीनों में आप सीख
जायेंगे।
इससे वह बहुत खुश होते
हैं। पारस और श्रीकांत जी का धन्यवाद करके अपने घर की ओर चल देते हैं।
श्रीकांत जी: बेटा कोई भी
खिलौना आज तुम्हें वो खुशी नहीं देता जो इस मुखौटे ने तुम्हें दी है। ये तुम आज
महसूस कर रहे होगे।
पारस अपने पापा से लिपट
जाता है।
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