मोर की बांसुरी

 

एक गांव के पास बहुत बड़ा और सुन्दर बगीचा था पास ही एक झरना भी था। गांव के बहुत कम लोग वहां जाया करते थे।



उसमें तरह तरह के फूल खिले रहते थे। उस बगीचे में तरह तरह के पक्षी विहार करते रहते थे। जिनमें कोयल, मोर, कबूतर, चिड़िया चहकते रहते थे।

एक मोर हमेशा उस बगीचे में आया करता था। जब भी मोल का मन करता वह झरने के पास चला जाता झरने से गिरते पानी के पास चला जाता। पानी की हल्की हल्की फुहार पड़ते ही नाचने लगता था।

वहीं पास के एक पेड़ पर एक दिन एक कोयल यह सब देख रही थी। उसे देख कर कोयल कुहकुहाने लगी। कोयल की बोली सुनकर मोर को बहुत मजा आया वह खुशी से अपने पूरे पंख खोल कर नाचने लगा।

कुछ देर बाद कोयल उड़ जाती है। मोर भी थक चुका था। वह वापस चला जाता है।

अगले दिन से यही सिलसिला चलने लगता है। पेड़ पर बैठी कोयल अपनी मधुर गले से बहुत अच्छा स्वर निकालती जिसे सुनकर मोर नाचने लगता था। दोंनो को बहुत मजा आता है।

कुछ ही दिन में कोयल और मोर दोंनो दोस्त बन जाते हैं। एक दिन मोर कोयल से पूछता है – ‘‘कोयल बहन तुम इतना अच्छी आवाज में कैसे कुहकुहा लेती हों।’’

यह सुनकर कोयल कहती है – ‘‘मोर भाई ये सब तो उपर वाले की देन है। उन्होंने मेरे गले में इतनी मिठास भर दी है कि मैं जब भी बोलती हूं मेरे कंठ से बहुत सुन्दर बोली निकलती है।’’

मोर को कोयल से जलन होने लगती है। वह सोचता है कि वह नाच तो अच्छा लेता है। अगर वह कोयल की तरह गाने भी लगे तो सब उसकी कितनी तारीफ करेंगे। काश कोयल का गला मुझे मिल जाये।

इसी उधेड़बुन में वह नाचना छोड़ देता है। अब वह झरने के पास जाना भी बंद कर देता है। उधर कोयल हर दिन झरने के पास वाले पेड़ पर बैठ कर कुहकुहाती रहती थी। लेकिन मोर वहां नहीं आता।

मोर का मन अब नाचने में नहीं लगता था। वह हर समय यही सोचता रहता कि कैसे कोयल की तरह गाने लगूं। वह कई बार कोशिश भी करता लेकिन उसके गले से आवाज ही नहीं निकलती थी।कुछ दिन बाद कोयल भी उस पेड़ पर आना बंद कर देती है। मोर जब भी कोयल को देखता वह उससे बात नहीं करता था। उसे कोयल से नफरत हो जाती है।

एक दिन मोर एक पेड़ की डाल पर बैठा था। तभी उसे कोयल के जैसी बोली सुनाई देती है। वह ध्यान से देखता है कि गांव की गलियों में एक आदमी बांसुरी बजाता हुआ जा रहा है।

मोर यह देख कर बहुत खुश होता है। वह सोचता है – ‘‘अरे वाह यह तो कोयल से भी अच्छी आवाज निकाल रहा है। क्यों न मैं इनमें से एक बांसुरी ले लूं।’’

वह डाल डाल पर उड़ते उड़ते बांसुरी वाले का पीछो करने लगता है। बांसुरी वाला एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिये बैठ जाता है और अपना बांसुरी का थैला वहीं पास में रख देता है।

मोर चुपके से पेड़ के पीछे से जाता है और उस थैले में से धीरे धीरे एक बांसुरी चोंच से खीचने लगता है। बांसुरी वाला गहरी नींद में सो रहा था। मोर धीरे धीरे बांसुरी निकाल लेता है। और बांसुरी को चौंच में दबा कर उड़ कर एक पेड़ की डाल पर बैठ जाता है।

मोर बहुत खुश था वह सोच रहा था – ‘‘अब मैं नाच कर और गा कर सबसे बढ़िया पक्षी बन जाउंगा। अब उस कोयल का घमंड भी टूट जायेगा। बहुत कहती थी। उपर वाले ने उसे ऐसा बनाया है। अब तो मैं उससे भी अच्छा संगीत निकाल कर दिखाउंगा।’’

लेकिन अब समस्या यह थी कि वह बांसुरी बजाये कैसे बांसुरी को छोड़ता है तो नीचे गिर जायेगी।

इसलिये वह बगीचे में नीचे आ जाता है। बांसुरी को जमीन पर रख कर उसे चोंच में दबा कर फूंक मारता है। लेकिन चौंच की दूसरी तरफ से हवा निकल जाती है। बांसुरी बज नहीं पाती।

इससे मोर बहुत परेशान हो जाता है। फिर वह सोचता है कि अगर मेरी चोंच न हो तो वह आराम से उस आदमी करह बांसुरी बजा लेता।

वह एक पत्थर के पास जाकर जोर जोर से अपनी चोंच उसमें मारता है। लेकिन चोंच नहीं टूटती। फिर वह एक पेड़ के तने में अपनी चोंच फसा कर तोड़ देता है। चोंच टूटते ही उसे बहुत दर्द होता है। वह दर्द से चिल्लाने लगता है। लेकिन कोई वहां नहीं आता। उसके बाद मोर बहुत रोता है। फिर भी वह किसी तरह बांसुरी बजाने की कोशिश करता है।

लेकिन बिना चौंच के बांसुरी पकड़े कैसे। यह तो उसने पहले सोचा नहीं था। हार कर वह बांसुरी को फेंक देता है। लेकिन चोंच टूटने के कारण अब वह दाना भी नहीं चुग पा रहा था। वह परेशान सा इधर उधर भटकने लगता हैं

तभी कोयल की नजर मोर पर पड़ जाती है।

कोयल उसके पास आती है – ‘‘मोर भाई क्या हुआ ये चौंच कैसे टूट गई?’’

मोर उसे सारी बात बाताता है – यह सुनकर कोयल उससे कहती है – ‘‘भाई मैंने तो तुमसे पहले ही कहा था। ईश्वर ने जिसे जैसा बनाया है। वही ठीक है।

तुम सोचो अगर मैं नाचने लगूं को कैसी लगूंगी। ईश्वर ने मुझे काला बनाया। लेकिन आवाज बढ़िया दी। तुम्हें इतना सुन्दर बनाया कि सब तुम्हें देखने को तरसते हैं। तुम्हारे जैसा रूप किसी पक्षी का नहीं है।

मोर यह सुनकर रोने लगा – ‘‘सही कह रही हों बहन मैंने अपना नुकसान कर लिया अब मैं दाना कैसे चुगुंगा। मैं तो मर जाउंगा।’’

कोयल बोली – ‘‘भाई चिन्ता मत करो जब तक तुम्हारी चौंच पहले जैसी ठीक नहीं हो जाती मैं तुम्हारे मुंह में दाना डाल दूंगी। लेकिन तुम्हें पहले की तरह नाचना पड़ेगा।’’

यह सुनकर मोर बहुत खुश हुआ। दोंनो पहले की तरह नाचने गाने लगे।


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