गरीब की होली

 

सुरजपुर गॉव में बिमला अपने बेटे सुनील के साथ रहती थी। बिमला के पति का देहान्त हो चुका था। वह गॉव के एक सेठ के घर में पानी भरने का काम करती थी।



एक दिन जब शाम को जब बिमला घर वापिस आई तो सुनील ने कहा ‘‘मॉं स्कूल में मास्टर जी ने घर से पैसे लाने के लिए कहा है’’

यह सुनकर बिमला ने पूछा ‘‘क्यों पैसे किसलिए मंगाये हैं तेरी फीस तो जमा करा दी है’’

तब सुनील ने खुश होकर कहा ‘‘मॉं तुम्हें मालूम है अगले सप्ताह होली आने वाली है और हम सब स्कूल में होली खेलेंगे साथ ही मिठाई भी बटेगी मास्टर जी ने कहा है कि अपने अपने घर से रंग गुलाल लाना और मिठाई के लिए पैसे भी लाना कल तुम मुझे पैसे दे देना और होली से 2 दिन पहले रंग और गुलाल दिलवा देना’’

यह सुनकर बिमला सोच में पड़ गई कुछ देर सोचने के बाद उसने कहा ‘‘बेटा मेरे पास पैसे नहीं हैं और तू होली से पहले स्कूल से छुट्टी कर लेना तेरे पास एक ही जोड़ी कपड़े हैं अगर किसी ने रंग डाल दिया तो क्या पहनेगा।’’ यह कहकर बिमला अपने काम में लग गई।

बिमला की बात सुनकर सुनील रोने लगा उसने रोते रोते कहा ‘‘मॉं हम इतने गरीब क्यों है कि होली भी नहीं खेल सकते। इस बार मैं होली जरूर खेलूंगा यदि स्कूल नहीं जाने दोंगी तो मेरे लिए घर में ही गुंजिया और मिठाई बनाओ मैं यहीं अपने दोस्तों के साथ होली खेल लूंगा।’’

बिमला ने बात टालने के लिए उससे कहा ‘‘ठीक है अभी काफी दिन है होली में देखेंगे और हॉं स्कूल के कपड़ों को बचा कर रख होली का रंग उसमें न लगने पाये’’

होली से ४ दिन पहले सुनिल ने घर आकर बताया ‘‘मॉं कल स्कूल में होली है और परसों से छुट्टी तुमने स्कूल जाने को मना किया लेकिन अब मेरे लिए घर में गुंजिया और मिठाई बनाओ।’’

बिमला ने उसे कहा ‘‘अच्छा कल बनायेंगे’’

अगले दिन बिमला सेठ जी के घर गई और उनसे कहा ‘‘सेठ जी मुझे कुछ पैसे उधार दे दीजिए मेरा बेटा बहुत जिद कर रहा है उसके लिए गुंजिया और मिठाई बनानी है’’

वह सेठ जी से बात कर ही रही थी तभी सेठानी बाहर आकर गुस्से में बोली ‘‘तुझे शर्म नहीं तेरा पति मर चुका है और तू होली खेलेगी। हमारे गॉव में विधवा को कोई त्यौहार मनाने का हक नहीं है’’

तब बिमला ने कहा ‘‘मालकिन आप नाराज न हों मैं तो केवल अपने बच्चे का मन रखने के लिए मिठाई बनाना चाहती हूं और वही होली खेलेगा मैं नहीं’’

यह सुनकर सेठानी और गुस्सा हो गई और बोली ‘‘बच्चे का तो बहाना है तेरा मन कर रहा होगा मिठाई पकवान खाने का’’

बिमला को भी गुस्सा आ गया उसने कहा ‘‘मलकिन मैं कोई भीख नहीं मांग रही हूं पैसे उधार मांग रही हूं अगले महीने तनख्वा में से काट लेना’’

यह सुनकर सेठानी बोली ‘‘नहीं होली के नाम पर एक पैसा भी नहीं मिलेगा काम करना है तो कर नहीं तो मत कर कोई मजबूरी हो तो उधार दे भी दें मौज मस्ती के लिए उधार नहीं मिलेगा।’’

बिमला गुस्से में घर वापस आ गई उसने सुनील से कहा ‘‘बेटा मुझे पैसे नहीं मिले इसलिए हम पकवान नहीं बना पायेंगे और होली भी नहीं खेल सकेंगे’’

यह सुनकर सुनील रोने लगा और रोते रोते सो गया।

छोटी होली के दिन सुनील उदास बैठा था। बिमला भी घर पर ही थी। तभी स्कूल के मास्टर जी सुनील के घर आये। उन्होंने कहा ‘‘बिमला बहन सुनील को होली उत्सव में स्कूल क्यों नहीं भेजा’’

बिमला ने उनसे कहा ‘‘मास्टर जी आप तो जानते हैं मैं बहुत गरीब हूं स्कूल में जमा करने के लिए पैसे नहीं थे और इसके पास एक ही जोड़ी कपड़े है अगर वह भी रंग से खराब हो जाते हो नये कपड़े कहां से आते’’

यह सुनकर मास्टर जी ने कहा ‘‘जब सुनील स्कूल नहीं आया तो मैं समझ गया था स्कूल में काफी मिठाई और रंग गुलाल बच गये थे इसलिए मैं इसके लिए ले आया’’

यह कहकर मास्टर जी ने मिठाई और रंग सुनील को दे दिये सुनील बहुत खुश हो गया।

मास्टर जी के जाने के बाद बिमला ने सुनील को मिठाई दी और बाकी की मिठाई उठा कर रख दी यह देख सुनील ने कहा ‘‘मॉं तुम भी मिठाई खा लो’’

यह सुनकर बिमला ने कहा ‘‘बेटा थोड़ी सी मिठाई है तू बाद में खा लेना’’

अगले दिन होली थी बिमला सेठ जी के घर पानी भरने चली गई सुनील रंग लेकर होली खेलने चला गया। बिमला जब सेठ जी के घर पानी भर कर लेजा रही थी। रास्ते में उसे सुनील मिल गया उसने कहा ‘‘मॉं तुम आज भी काम कर रही हों आज मेरे साथ होली खेलो मैं तुम्हें रंग लगाउंगा’’बिमला ने बहुत मना किया

लेकिन वह नहीं माना उसने बिमला के उपर रंग डाल दिया। बिमला जब सेठ जी के घर पहुंची तो सेठानी उसे देख कर गुस्से में बोली ‘‘आखिर तू मानी नहीं होली खेल ही ली तूने पूरे गॉव की इज्जत मिट्टी में मिला दी’’

बिमला ने कहा ‘‘मालकिन बच्चे ने रंग डाल दिया मैंने किसी के साथ होली नहीं खेली’’

लेकिन सेठानी ने गुस्से में कहा ‘‘एक तो चोरी उपर से सीना जोरी आज से मेरे घर पानी भरने की जरूरत नहीं है’’

उनकी बात सुनकर बिमला रोने लगी उसने कहा ‘‘मालकिन हम भूखे मर जायेंगे हम पर दया करो’’

लेकिन सेठानी नहीं मानी तभी सेठानी का लड़का मोहन वहां आ गया उसने अपनी मॉं से कहा ‘‘मॉं जब वह कह रही है उसने होली नहीं खेली तो तुम क्यों उसके पीछे पड़ी हों और यह विधवा है तो इसमें इसका क्या दोष’’

सेठानी ने उसे डाटा और कहा ‘‘हमारे गॉव में विधवा होली का रंग नहीं लगा सकती तू अन्दर जा यह हम औरतों का मामला है’’

यह सुनकर मोहन बोला ‘‘ठीक है यदि विधवा होली नहीं खेल सकती तो मैं इससे शादी कर लेता हूं फिर इसे सारे हक मिल जायेंगे’’ यह कहकर मोहन ने गुलाल को बिमला की मांग में भर दिया’’

सेठ और सेठानी कुछ समझ नहीं आ रहा था वे क्या करें मोहन ने उसी समय बिमला से विवाह कर लिया। होली के दिन बिमला विधवा से सुहागन बन चुकी थी। और अनाथ सुनील को पिता का सुख मिल गया था।


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