एक खेत में छोटी लाल मुर्गी रहा करती थी। वह बहुत मेहनती थी। उसके घर के पास ही एक कुत्ता, एक बिल्ली और एक बत्तख रहते थे। ये तीनों आलसी थी।
इसके बाद भी चारों में अच्छी
दोस्ती थी। कई बार कुत्ता, बिल्ली
और बत्तख छोटी लाल मुर्गी का फ़ायदा उठाते थे। वह मेहनत करके अपना भोजन तैयार करती
और ये तीनों खाने पहुँच जाते। मुर्गी भी दोस्ती के कारण इन्हें कुछ नहीं कहती थी।
एक दिन की बात है। छोटी लाल मुर्गी खेत में घूम रही थी कि उसे मिट्टी
में पड़े गेहूं के कुछ बीज दिखाई पड़े, जिसे
देखकर वह सोचने लगी – ‘क्यों न मैं इन बीजों को खेत में बो दूं। जब फसल होगी, तो मैं गेहूं पिसवा लूंगी और उसकी रोटी बनाकर मज़े से खाऊंगी।‘
उसे आशा थी कि उसके दोस्त इस काम में उसकी सहायता अवश्य करेंगे। उसने
गेंहू के दाने उठा लिये और सबसे पहले कुत्ते के पास पहुँची। उसने कुत्ते से कहा, “दोस्त! देखो मुझे खेत में गेहूं के ये बीज मिले हैं। मैं इसे बोना
चाहती हूँ। क्या तुम मेरी सहायता करोगे।”
कुत्ता उस समय आराम कर रहा था। उसने जवाब दिया, “नहीं! ये मेरे सोने का समय है और मुझे ज़ोरों की नींद आ रही हैं। मैं
अभी ये काम नहीं कर सकता।”
छोटी लाल मुर्गी बत्तख के पास पहुँची और उससे पूछने लगी, “दोस्त! क्या तुम इन गेंहुओं को बोने में मेरी सहायता करोगी।”
बत्तख बोली, “नहीं!
देखो, कितनी धूप है. मैं तो झुलस
जाऊंगी. माफ़ करना मैं तुम्हारी सहयता नहीं कर सकती।”
तब छोटी लाल मुर्गी बिल्ली के पास गई और उसे भी गेंहू के बीज दिखाकर पूछा, “दोस्त! कुत्ता और बत्तख तो मेरी सहायता नहीं कर रहे। क्या तुम मेरी
सहायता करोगी।”
बिल्ली बोली, “देखो, इस समय तो मैं पड़ोस के घर में दूध पीने जा रही हूँ। इसलिए अभी तो
मैं तुम्हारी सहायता कर ही नहीं सकती. दूध नहीं मिला, तो मैं भूखी रह जाऊंगी।”
दु:खी होकर छोटी लाल मुर्गी बोली, “कोई बात नहीं! मैं खुद ही जाकर खेत में इन बीजों को बो देती हूँ।”
वह खेत में गई और कड़ी धूप में दिन भर मेहनत कर शाम तक उसने सारे बीज
बो दिये।
समय बीता और खेत में गेंहू की फसल लहलहाने लगी, जिसे देख छोटी लाल मुर्गी बहुत खुश हुई और दौड़कर सबसे पहले कुत्ते के
पास पहुँची। उसने कुत्ते से पूछा, “दोस्त!
खेत में फसल लहलहा रही है. क्या तुम फसल काटने में मेरी मदद करोगे?”
“नहीं! मैं यह काम नहीं कर पाऊंगा। मेरी तबियत ज़रा ठीक नहीं।” कुत्ते
ने कन्नी काट ली।
छोटी लाल मुर्गी बत्तख के पास पहुँची और उससे सहायता करने के लिए कहा, तो वह बोली, “देख तो रही हो, मैं कितनी छोटी सी हूँ, मैं कैसे खेत में फसल काटूंगी?
माफ़
करना, मुझसे न हो पायेगा।“
छोटी लाल मुर्गी बिल्ली के पास पहुँची, जो नहाकर आई थी और धूप में बैठी थी। छोटी लाल मुर्गी ने उससे फसल
काटने में सहायता मांगी, तो
वह बिदक कर बोली, “नहीं, मैं ये काम नहीं करूंगी। मैं अभी-अभी नहाकर आई हूँ। मैं वहाँ
धूल-मिट्टी में गंदी हो जाऊंगी।”
छोटी लाल मुर्गी दु:खी होकर वहाँ से चली गई और सीधे खेत में पहुँची।
वहाँ उसने अकेले ही फसल की कटाई की।
अगले दिन उसने सोचा कि क्यों न इन गेंहुओं को मैं पिसवा लूं. आटा
रोटी बनाने के काम आ जायेगा।
वह फिर कुत्ते के पास पहुँची और कहने लगी, “दोस्त! चलो ना मेरे साथ आटा चक्की तक. मुझे इन गेंहुओं को पिसवाना
है।“
“ऐसे काम के लिए मुझसे ना कहा करो। मैं इन सब कामों के लिए नहीं हूँ।“
कुत्ते ने दो टूक जवाब दिया।
छोटी लाल मुर्गी ने जब बत्तख से पूछा, तो उसने फिर वही बहाना बनाया कि वह तो बहुत छोटी सी है, वह इतनी दूर आटा चक्की तक नहीं जा पायेगी।“
बिल्ली के पास जाकर जब छोटी लाल मुर्गी ने सहायता मांगी, तो बिल्ली बोली, “आटा
चक्की से उड़ने वाले आटे से मेरे बाल खराब हो जायेंगे, मैं तो वहाँ नहीं जा सकती.”
दुखी छोटी लाल मुर्गी अकेले ही आटा चक्की गई और गेहूं को पिसवा कर
वापस आई।
अगले दिन उसने रोटी बनाने की सोची और अपने तीनों दोस्तों के पास पहुँची।
तीनों खेत में खेल रहे थे। उसने पूछा, “दोस्तों! क्या तुम रोटी बनाने में मेरी मदद करोगे?“
“नहीं!” तीनों एक स्वर में बोले, “हमें
तो रोटी बनाना आता ही नहीं।“
छोटी लाल मुर्गी ने अकेले ही जाकर रोटी बनाई। जब गर्मागर्म रोटियाँ
तैयार हो गई, तो वह कुत्ता, बत्तख और बिल्ली के पहुँची और उन्हें रोटियाँ दिखाते हुए बोली, “अब बताओ कि रोटियाँ कौन कौन खायेगा?”
“हम!” तीनों एक साथ बोले।
“नहीं!” मुर्गी बोली, “इन
रोटियों के लिए सारी मेहनत मैंने की है, इसलिए
मैं ही सारी रोटियाँ खाऊंगी।“ और मज़े से रोटियाँ खाने लगी। कुत्ता, बत्तख और बिल्ली ने कोई मेहनत नहीं की थी, इसलिए वे बस छोटी लाल मुर्गी का मुँह देखते रह गये।
सीख
मेहनत से कभी जी नहीं चुराना चाहिए।
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