दीपावली : त्यौहार रोशनी का



भारत की सांस्कृतिक विरासत को हरा-भरा करने में यहां के विविधता भरे त्यौहारों का अहम स्थान है. दीपावली, होली, दशहरा हमारे जीवन को नया रंग रूप देते हैं. यह त्यौहार ही हैं जो हमें जीने का नया जोश दिलाते हैं. अगर होली हमारे जीवन में रंग भरने के लिए जानी जाती है तो हमारे जीवन में उजियारा फैलाने के लिए दीपावली का त्यौहार है. दीपावली एक ऐसा त्यौहार है जिसे हम पूरी पवित्रता और हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं.

दीपावली दीपों का त्यौहार है. इस दिन रोशनी का विशेष महत्व होता है. दीपावली के कई मायने हैं. भारत के हर धार्मिक त्यौहार की तरह इस त्यौहार के पीछे भी पुराणिक कथा है. पर तमाम कथाओं और रीति रिवाजों के बावजूद दीपावली ही एक ऐसा पर्व है जिसे हम साल का सबसे बड़ा पर्व कह सकते हैं. यह हिन्दुओं का सबसे बड़ा पर्व होता है. लेकिन भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में कोई भी पर्व किसी खास जाति या धर्म तक तो सीमित रह ही नहीं सकता. आज दीपावली भारत में रहने वाले हर इंसान के लिए एक अहम त्यौहार है.

 धार्मिक मान्यता



कार्तिक अमावस्या की काली रात को दीयों से उजाले में बदलने की यह परंपरा बहुत पुरानी है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री रामचंद्रजी चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा रावण का वध कर अयोध्या वापस लौटे थे. तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था. उसी परंपरा को आज भी हम मानते हैं और दीपावली पर दिए जलाकर मर्दाया पुरुषोत्तम राम को याद करते हैं.

लक्ष्मी पूजन:



कलयुग में सांसारिक वस्तुओं और धन का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस युग में लक्ष्मी जी ही ऐसी देवी हैं जो अपने भक्तों को संसारिक वस्तुओं से परिपूर्ण करती हैं और धन देती हैं. मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय कार्तिक अमावस्या को ही लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं. इसलिए इसी दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है.

दीपावली की कथा

वैसे तो दीपावली मनाने का मुख्य कारण भगवान राम का अयोध्या लौटना था पर मनुष्य जिसमें शायद अब पुरुषोत्तम बनने की हिम्मत रही नहीं वह इस त्यौहार को मात्र लक्ष्मी पूजन का दिन मनाता है. क्यूंकि लक्ष्मी जी धन की देवी हैं और धन आज सबसे ज्यादा महत्व रखता है इसलिए आज ज्यादातर लोग इस पर्व पर मात्र लक्ष्मी जी को ही याद करते हैं.

रामायण तो हम सब ने सुनी ही है चलिए इस बार लक्ष्मी जी से जुड़ी एक कथा भी पढ़ लेते हैं:

 प्राचीनकाल में एक साहूकार था. उसकी एक सुशील और सुंदर बेटी थी. वह प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी. उस पीपल पर लक्ष्मी जी का वास था. एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से कहा- ‘तुम मेरी सहेली बन जाओ.’ तब साहूकार के बेटी ने लक्ष्मी जी से कहा- ‘मैं कल अपने पिता से पूछकर उत्तर दूंगी.’ घर जाकर उसने अपने पिता को सारी बात कह सुनाई. उसने कहा- ‘पीपल पर एक स्त्री मुझे अपनी सहेली बनाना चाहती है.’ तब साहूकार ने कहा- ‘वह तो लक्ष्मी जी हैं. और हमें क्या चाहिए, तू उनकी सहेली बन जा.’

इस प्रकार पिता के हां कर देने पर दूसरे दिन साहूकार की बेटी जब पीपल सींचने गई तो उसने लक्ष्मी जी को सहेली बनाना स्वीकार कर लिया. एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी को भोजन का न्यौता दिया. जब साहूकार की बेटी लक्ष्मी जी के यहाँ भोजन करने गई तो लक्ष्मी जी ने उसको ओढ़ने के लिए शाल दुशाला दिया तथा सोने की चौकी पर बैठाकर, सोने की थाली में अनेक प्रकार के भोजन कराए. जब साहूकार की बेटी खा-पीकर अपने घर को लौटने लगी तो लक्ष्मी जी ने उसे पकड़ लिया और कहा- ‘तुम मुझे अपने घर कब बुला रही हो? मैं भी तेरे घर जीमने आऊंगी.’ पहले तो उसने आनाकानी की, फिर कहा -‘अच्छा, जाना.’ घर आकर वह रूठकर बैठ गई. तब साहूकार ने कहा- ‘तुम लक्ष्मीजी को तो घर आने का निमन्त्रण दे आई हो और स्वयं उदास बैठी हो.’ तब साहूकार की बेटी बोली- ‘पिताजी! लक्ष्मी जी ने तो मुझे इतना दिया और बहुत उत्तम भोजन कराया. मैं उन्हें किस प्रकार खिलाऊंगी, हमारे घर में तो वैसा कुछ भी नहीं है.’

तब साहूकार ने कहा- ‘जो अपने से बनेगा, वही ख़ातिर कर देंगे. तू जल्दी से गोबर मिट्टी से चौका देकर सफ़ाई कर दे. चौमुखा दीपक बनाकर लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा.’ तभी एक चील किसी रानी का नौलखा हार उठा लाई और उसे साहूकार की बेटी के पास डाल गई. साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर सोने का थाल, शाल, दुशाला और अनेक प्रकार के भोजन की तैयारी कर ली. थोड़ी देर बाद लक्ष्मी जी उसके घर पर गईं. साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को बैठने के लिए सोने की चौकी दी. लक्ष्मी जी ने बैठने को बहुत मना किया और कहा- ‘इस पर तो राजा-रानी बैठते हैं.’ तब साहूकार की बेटी ने कहा- ‘तुम्हें तो हमारे यहाँ बैठना ही पड़ेगा.’ तब लक्ष्मी जी उस पर बैठ गई. साहूकार की बेटी ने लक्ष्मीजी की बहुत ख़ातिरदारी की, इससे लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई और साहूकार के पास बहुत धन-दौलत हो गई.

दीपावली को सफाई का महत्व:

दीपावली धार्मिक कारणों से ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी एक अहम पर्व है. ज्यादातर लोग इस दिन घर की पूरी सफाई और रंगाई करते हैं जिससे जहां पूरे साल सफाई नहीं होती वहां भी सफाई हो जाती है.

दीपावली पूजन विधि:

दीपावली को लक्ष्मी, गणेश और सरस्वती की पूजा करने का विधान है. इसके साथ भगवान राम और सीताजी को भी पूजा जाता है. इस दिन गणेश जी की पूजा इसलिए की जाती है क्यूंकि गणेश पूजन के बिना कोई भी पूजन अधूरा होता है और सरस्वती जी की इसलिए की जाती है क्यूंकि धन सिद्धि के साथ ज्ञान भी पूजनीय है.

इस दिन सुबह-सुबह जल्दी उठकर नहा लेना चाहिए और आलस्य का त्याग करना चाहिए. कहा जाता है कि लक्ष्मी वहीं वास करती हैं जहां सफाई और स्फूर्ति हो. शाम के समय लक्ष्मी जी की फोटो या मूर्ति पर रोली बांधे.

छः चौमुखे 26 छोटे दीपक रखें. इनमें तेल-बत्ती डालकर जलाएं. फिर जल, मौली, चावल, फल, गुढ़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करें. पूजा पहले पुरुष तथा बाद में स्त्रियां करें. पूजा के बाद एक-एक दीपक घर के कोनों में जलाकर रखें.

एक छोटा तथा एक चौमुखा दीपक रखकर निम्न मंत्र से लक्ष्मीजी का पूजन करें:

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया.

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्वदर्चनात॥

इस पूजन के पश्चात तिजोरी में गणेशजी तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति रखकर विधिवत पूजा करें. इसके बाद मां लक्ष्मी जी की आरती सपरिवार गाएं. पूजा के बाद खील बताशों का प्रसाद सभी को बांटें.

 

 

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